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मई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

में और मेरे दोस्त-एक चिंतन

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 कलयुग में दोस्त(दो+,अस्त,) स्दोस्ती(जहा खत्म हो( दो की हस्ती) साथियों जहा तक मेरे जीवन में मेरा हर मित्र मेरी एक अमानत हे।अगर मित्र हे तो अच्छा बुरा देखने का आपको कोई राइट नही सिर्फ दो* शरीर दो विचार दो भावनाएं स्वार्थ का अस्त *हो जाए वोह हे दो*+अस्त*=दोस्त दोस्त सही हो या गलत उसका साथ देना सच्चे दोस्त की पहचान हे कर्ण&कृष्णा सुदामा द्वापर युग परंतु यह कलयुग हे यहां दोस्ती से ज्यादा स्वार्थ ,तर्क ,,वितर्क ,में सही था,तू गलत था मेने तेरे लिए यह किया,तूने क्या किया यह सब बातो का चिंतन एक मत भेद पैदा कर पाता हे सच्चे दोस्तो की दोस्ती को नही।मेरा मानना हे अगर किसी दोस्त के संघर्ष को देखोगे तो बुराई भूल जाओगे।इंसान का सबसे बड़ा गुनाह है की दोस्ती में प्रतिस्पर्धा वो भले किसी की भी हो, यहा तक दोस्ती का निजीकरण  कद,पद,आर्थिक संपन्नता शोहरत के आधार पर यह दुनिया हे ,दुनिया में कद पद आर्थिक सफलता शोहरत सब समय समय पर बदलते रहते हे।आज की तारीख में मेरा दोस्त मेरा शुभचिंतक हे की नही यह  सोचना पड़ जाए  ।लेकिन अगर दोस्त के बारे में इतना सोचना पड़े।दोस्ती में जात पात धर्म कद पद के लिए कोई जगह नही

आपके घर में एक और मंदिर हे

महामारी में हुई मेरी भगवान से बात

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https://krishnaguruji.blogspot.com/2021/05/blog-post_14.html  कोरोना काल के लॉक डाउन में मेरी भगवान से बात चीत- सादर नमन में तो धन्य हो गया आज आपके दर्शन पा कर भगवान-अरे बेटा में तो तेरे साथ ही तो हु। भ से भूमि। ग से गगन वा से वायु अग्नि न से नीर जल सब कुछ तो तुझे दे कर भेजा हे कभी यात्रा में अपने ड्राइवर का चेहरा देखा है।अरे जब ट्रेन में जाता हे तो ड्राइवर का चेहरा देखता हे।फ्लाइट में पायलट का।वैसे ही तेरी जीवन यात्रा में तेरे पास हु में तो हर पल तेरी श्वास के  साथ हु।जैसे तेरी कार ड्राइवर चलाता है वैसे ही मेरी तेरी श्वास चलाता हु।तेरी हर बात का पालन उसी प्रकार करता हु जिस प्रकार तेरी गाड़ी का ड्राइवर तेरी हर बात तेरी मर्जी के हिसाब से चलता है।में भी चलता हु।तू अच्छे काम करे तो भी साथ।बुरे करें तो तुझे याद दिलाता हु यह रास्ता गलत हे।पर फिर भी तू चलने का बोलता में चल देता हु।मेने तुझ पर कोई पाबंदी नहीं लगाई मेने पूछा- भगवान यह सुख दुख क्यों महामारी में तूने मेरे अपनो की जान ली इतना दुख  जीवन संकट में ला दिया भगवान-बेटा इसका चिंतन तू ही कर ऐसा क्यों हुआ। मेने पूछा-मेरे परिवार में बड़ा स

मजहब, धर्म ,महा मारी

 आज सोचना पड़ेगा हमे की हम आज अपने मजहब के साथ अपने धर्म के साथ दूसरे धर्म का सम्मान कर सकते हे की नही।हर धर्म में कुछ ना कुछ अलग संदेश हे जो पूर्णता लाता है। में आज चिंतन में आ गया की लोग अपने साथियों में धर्म जात पात देखने लगे।विशेषकर बुद्धिजीवी भी जो सिर्फ एक अदना सा इंसान है इस महामारी में इलाज कराते वक्त कोई परहेज नहीं बच्चे किसी दूसरे धर्म के देशों में काम करे कोई परहेज नहीं।अगर किसी धर्म में एकता हे।किसी धर्म में सेवा के भाव हे,क्या हम उसकी बुराई करेगे या उस से सीखेंगे।अगर कोई अपने धर्म की राह पर आपके धर्म से अधिक तेज चल रहा हे आपको तकलीफ क्यू।अगर आप एक नही हो सकते तो जो एक रह रहे हे उस से परहेज क्यों।दोहरा जीवन दो मुखौटे।क्या हम दूसरे धर्म से नफरत इसलिए करने लगे की वोह धर्म हमसे नफरत करता है।हमने सीखा है अहिंसा परमोधर्म ।पर जब धर्म पर आए तो जान पर खेलो।पर किसी को बाध्य करना कहा तक उचित है

आप तनाव में कैसे जाने

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 आप तनाव में हे कैसे जाने ।।। अगर आप मोबाइल हाथ में लिए पड़े हुए मेसेज दोबारा पढ़ने लगे तो आप निराशा के जोन में आराम की अधिकता भी एक प्रकार का तनाव देती है क्या आप चाहते हे येह मानसिक विषाद और न बड़े आइए साथ कुछ उपाय देखते हे 1अलमारी में आपके कपड़े एक दिन निकाल कर बैठे।कोन से नही पहनना उनको अलमारी से निकाले 2 अपने पुराने फोटो निकाल अपना अतीत देखे 3 एक वक्त डिसाइड करे जब सभी परिवार के सदस्य एक साथ बैठे। वरना जिंदगी मोबाइल में ही निकल जाएगी व्हाट्स ऐप फेसबुकअधिक उपयोग करे तो कॉरोना से ज्यादा खतरनाक है।।। 4-जिसका जो शौक है उसे मिल कर बढ़ावा दे।गीत डांस पहेली एक नियत समय पर 5-कठिन काम बोल रहा हु जब परिवार के साथ हो तो मोबाइल बंद करे 6 कही आपका कोई सदस्य वीडियो गेम तो नही खेल रहा ।वोह और कुछ नही अपने जीवन से खेल रहा हे रोके।सिर्फ खाने ब्रेकफास्ट आवाज न दे मुझे मालूम हे आप सब लोग कहेंगे यह तो हम सब कर रहे हे तो अपने  बेटे बेटी से उनके दादा दादी पर दादा, पर दादी। नाना नानी पर नाना पर नानी के नाम पूछे हम सब जानते हे पर जी हम जानते हे वोह कितना करते है ईश्वर ने इस कोरोना काल में सबकी यात्रा  एक