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अपने अंदर भी गुरु को खोजे

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  अपने अंदर भी गुरु को खोजे आज के समय में गुरु शब्द शिष्य शब्द अधिकांश जगह सिर्फ एक पंच तत्व शरीर।गुरु के द्वारा पूर्ण स्वार्थ सिद्धि तक रह गया है  आर्थिक सफलता, पारिवारिक सफलता,आध्यात्मिक सफलता  से  गुरु शब्द को ना जोड़े, जो भी आपको मिलना हे वोह तय हे ।बस पीड़ा में दर्द में जिस प्रकार आपके माता पिता सहयोग देते हे जब तक आपका विवेक जाग्रत नही हो जाता। विवेक जाग्रत होने के बाद आध्यात्मिक गुरु अपने ज्ञान से आपके जीवन को दिशा देता हे।वह दिशा सही भी हो सकती हे गलत भी भागवत गीता में कहा गया है कलयुग में दैविक संपदा असुर संपदा एक साथ होगी चुनना आपको हे आपको किस राह पर जाना हे। जेब काटने वाला भी अपने गुरु को प्रणाम करता हे जिस से जेब काटना सीखता हे गुरु को एक शरीर में सीमित करना गुरु पूर्णिमा की पूर्णतः कृतज्ञता नही हे गुरु ना एक पंच तत्व में निवास करता है ना ही किसी आश्रम में।गुरु निवास करता है उसके द्वारा कहे गए शब्दो में, ,अनुभव रूपी ज्ञान में ।जिसको जीवन में अमल ला कर उसकी तृप्ति की कृतज्ञता देना सच्ची गुरु पूर्णिमा हे गुरु को ज्ञान के रूप में लेने वाला वर्ग ही गुरु तत्व...