अपने अंदर भी गुरु को खोजे

 अपने अंदर भी गुरु को खोजे


आज के समय में गुरु शब्द शिष्य शब्द अधिकांश जगह सिर्फ एक पंच तत्व शरीर।गुरु के द्वारा पूर्ण स्वार्थ सिद्धि तक रह गया है

 आर्थिक सफलता, पारिवारिक सफलता,आध्यात्मिक सफलता  से  गुरु शब्द को ना जोड़े,

जो भी आपको मिलना हे वोह तय हे ।बस पीड़ा में दर्द में जिस प्रकार आपके माता पिता सहयोग देते हे जब तक आपका विवेक जाग्रत नही हो जाता।

विवेक जाग्रत होने के बाद आध्यात्मिक गुरु अपने ज्ञान से आपके जीवन को दिशा देता हे।वह दिशा सही भी हो सकती हे गलत भी

भागवत गीता में कहा गया है कलयुग में दैविक संपदा असुर संपदा एक साथ होगी चुनना आपको हे आपको किस राह पर जाना हे।

जेब काटने वाला भी अपने गुरु को प्रणाम करता हे जिस से जेब काटना सीखता हे

गुरु को एक शरीर में सीमित करना गुरु पूर्णिमा की पूर्णतः कृतज्ञता नही हे

गुरु ना एक पंच तत्व में निवास करता है ना ही किसी आश्रम में।गुरु निवास करता है उसके द्वारा कहे गए शब्दो में, ,अनुभव रूपी ज्ञान में ।जिसको जीवन में अमल ला कर उसकी तृप्ति की कृतज्ञता देना सच्ची गुरु पूर्णिमा हे

गुरु को ज्ञान के रूप में लेने वाला वर्ग ही गुरु तत्व को समझ सकता हे

मां का  प्रथम स्पर्श से आपके जीवन में गुरु आ जाता हे।आप का ख्याल सुप्तावस्था में भी माता पिता करते हे।दूसरा गुरु पिता जिसकी हिम्मत आपके जीवन को निर्भरता देती है

थोडे बुद्धि जाग्रत होती हे जब आपको आपका नाम आपके परिवार की जानकारी मिलती है

माता पिता के बाद आपके बड़े भाई बहन की सुरक्षा भी गुरु तत्व के रूप में आपके साथ रहती है

दोस्तो के साथ ज्ञान चर्चा भी जीवन को एक दिशा देती हे

जीवन में कुछ दोस्त अर्जुन के रूप में भी मिलेगे दुर्योधन के रूप में भी ।आपको किस की बातो में रस आता हे किस को अपना मित्र बनाते हे इसके लिए आपका विवेक प्रथम गुरु के रूप में माना जाता हे।आपके विवेक रूपी गुरु से ही आप अपना मार्गदर्शक गुरु चुनते हे

आपके परिवार के सदस्यों के लिए आप भी गुरु हे

कई बार आपके ज्ञान से दूसरे जीवन संवार लेते है।

पर आपके स्वय के परिवार के सदस्य नही 

सबकी यात्रा निश्चित हे

जीवन के सफर को सुगम बनाने में तकलीफों का अहसास कम हो।आत्म शक्ति बड़ाने में गुरु का ज्ञान सर्वोपरि हे जब तक उस ज्ञान को अपने जीवन में ना उतारे

जिनके आप माता पिता भाई बहन हे अर्थात जिनके आप गुरु हे।अपने गुरु को कृतज्ञता देने के साथ।उनको आशिर्वाद देना सच्ची कृतज्ञता हे

आप अपने गुरु में गुरु देखते है 

आपका गुरु आप में दूसरे के जीवन के आप भी गुरु बने इसका आशीर्वाद देता हे

आइए आज से संकल्प ले जो भी ज्ञान अपने गुरु से मिला हे उसको जीवन में उतारे  एवम उसको तृप्ति की कृतज्ञता गुरुपूर्णिमा को अपने गुरु को दे

बालावस्था का गुरु माता पिता भाई बहन

किशोर अवस्था के गुरु सखा

विवाह के बाद पति पत्नी

आगे की जीवन यात्रा में सदगुरु जो अपने ज्ञान से आपका जीवन सरल सुगम बना बड़ी से बड़ी पीड़ा को छोटा करे या सहन शक्ति में इजाफा करे।

मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं की आपके माता पिता भी जब बाल्य अवस्था में आते है याने बुजुर्ग हो जाते हे।वोह भी आप में अपना सेवक रूपी गुरु देखते हे।

यह क्रम चलता रहता है चलता रहेगा।बस गुरु पूर्णिमा का दिन आप में शिष्य भाव एवम गुरु भाव को जाग्रत करना हे।

जीवन में जिसने नया सीखने की इच्छा एवम सिखाने की इच्छा त्यागी 

वोह गुरु मार्ग से भटक जाता हे

जीवन गुरु बिना अधूरा।जो गुरु ज्ञान ना दे वोह गुरु अधूरा।जो ज्ञान किसी भाव में ना बदले वो ज्ञान अधूरा।जो भाव किसी क्रिया में ना बदले वोह भाव अधूरा

जो क्रिया किसी तृप्ति में ना बदले वो क्रिया अधूरी

गुरु  का कार्य हमे ज्ञान से तृप्ति तक पोहचाना हे।

इस तृप्ति की कृतज्ञता देना गुरु पूर्णिमा की पूर्णता हे

कृष्णा गुरुजी

इंदौर

टिप्पणियाँ

D G Mishra Adv ने कहा…
सीधे ह्रदय में उतरती है आपकी बातें, जय हो

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