कलयुग पुराण कृष्णा गुरुजी

https://youtube.com/playlist?list=PLhhjKzFN1OBeNVsqA2oEv_wbtfl-wbaOm&si=J05u1tG3hBkLK6ku कलयुग पुराण। संपादकीय

स्वयं के मुख से

मेरा नाम कृष्णा कांत मिश्रा आध्यात्म जगत में कृष्णा गुरूजी के नाम से लोग जानते है

रामायण में एक चोपाई है।।

"संत ,बिटव्, सरिता ,गिरी,धरणी

पर हित हेतु इनकी करनी

अर्थ है संत वृक्ष नदी पर्वत धरती अपने लिए नहीं दूसरो के लिए बने है।

जो की कटु सत्य है पर न जाने क्यूं संत अधिकांश पर हित की बजाय स्वयं संस्था हित में आ गए उसके बाद कही न कही हमारा वैदिक रीति रिवाज ने अपना मूल अस्तित्व खो कर भय ओर लालच के माध्यम बन गए जिसमे अधिकांश दोष हम जयसेवजन मानस का है जिन्होंने कारण जाने बगैर स्वीकार करना चालू कर दिया उसी रूपी में जो पहले था

हर जगह परिवर्तन हुआ युग परिवर्तन हुआ

में एक आम इंसान हु गृहस्थ का दिव्यांग भी हु पर अपनी दिव्यांगता को कभी अपने ऊपर हावी नही होने दिया।।

2 कलयुग पुराण क्यू

आज इस पुस्तक के माध्यम से सभी पंथों की बाते आज के युग के युवा किसी प्रकार ग्रहण करे इसके बारे में बताया गया है आज हर युवा तर्क मांगता है बगैर तर्क लॉजिक के स्वीकार नहीं करता उसी प्रकार सभी त्योहारों योग और प्रथाओं को लॉजिक के साथ जोड़ प्रस्तुत कर रहा हु,आपके हर प्रश्न का जवाब कलयुग पुराण में आपको मिलेगा।।।

एक कथा।

एक बार प्राचीन समय में एक आश्रम में गुरु जी रहा करते थे उस आश्रम में एक बिल्ली थी जो गुरुजी के निकट रहती थी आपस में बड़ा प्रेम था,सुबह शाम साधना करते वक्त बिल्ली उनकी साधना में बाधा

डालती थी इसलिए गुरुजी अपने शिष्यों के माध्यम से बिल्ली को आश्रम के पेड़ से बांध देते थे जब साधना पूर्ण होती बिल्ली को खोल दिया करते थे बिल्ली फिर गुरुजी के नजदीक आ कर बैठ जाती यह क्रम चलता रहा ,एक बार गुरुजी बैकुंठवासी हो गए।।उनकी जगह नए गुरुजी आए उन्होंने पूछा गुरुजी साधना कैसे करते थे शिष्यों द्वारा बताया गया की गुरुजी पहले बिल्ली को साधना के वक्त बंधवा देते थे

बिल्ली में नए गुरु जी में कोई आपस में पारस्परिक प्रेम नही था फिर भी बिल्ली को पेड़ से बांध दिया जाता क्रम चलता रहा।एक बार बिल्ली का निधन हो गया

आश्रम में हड़कंप मच गया गुरुजी साधना कैसे करेगे ।तत्काल नई बिल्ली को लाया गया क्रम फिर चलता रहा।

इस कहानी से मेरा अभिप्राय यह है की बहुत सी बाते रीति रिवाज जो उस समय में प्रासंगिक थी पर आज नही है।

परंपरा मान कर ढोते चले आ रहे है बगैर कारण जाने ना जाने कितनी बिल्ली गुरु बदलते गए हमने उसी को पकड़ रखा हे 

जाने कलयुग क्या है

अतीत कहता है पहले सतयुग हुआ करता था जिसमे देवताओं का लोक,असुर लोक अलग अलग हुआ करते थे

त्रेता युग में देवताओं असुरों के दो देश हो गए राम रावण श्रीलंका भारत।

द्वापर युग में देवता असुर एक ही परिवार में हो गए अर्जुन दुर्योधन महाभारत जिसकी साक्षी है

इस दौर को कलयुग कहते है जिसमे भागवत गीता के हिसाब से एक इंसान में ही दैविक संपदा असुरीय संपदा होती है 

कलयुग के इंसान में कब देवतत्व जाग्रत हो कब असुर कहा नही जा सकता क्यू की कलयुग में दिखावट बनावट सजावट पर ज्यादा ध्यान दे कर इंसान के व्यक्तित्व में गिरावट आती जा रही है

परिवर्तन प्रकृति का नियम है

कलयुग पुराण का मकसद सरलतम ढंग से सभी आध्यात्मिक उत्सव त्योहार को समाज सेवा से जो

Kalyug puran

ड़ना जो उसका लक्ष्य है

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